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हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकलेबहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
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हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
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इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब',कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
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तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना,कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता
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तुम न आए तो क्या सहर न हुईहाँ मगर चैन से बसर न हुईमेरा नाला सुना ज़माने नेएक तुम हो जिसे ख़बर न हुई
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जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगाकुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है
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इश्क मुझ को नहीं वहशत ही सहीमेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही
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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदालड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
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उन के देखे से जो आ जाती है चेहरे पर रौनकवो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
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बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है
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लफ़्ज़ों की तरतीब मुझे बांधनी नहीं आती “ग़ालिब”हम तुम को याद करते हैं सीधी सी बात है
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नादान हो जो कहते हो क्यों जीते हैं “ग़ालिब “किस्मत मैं है मरने की तमन्ना कोई दिन और
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ख्वाहिशों का काफिला भी अजीब ही है ग़ालिब अक्सर वहीँ से गुज़रता है जहाँ रास्ता नहीं होता
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रात है ,सनाटा है , वहां कोई न होगा, ग़ालिबचलो उन के दरो -ओ -दीवार चूम के आते हैं
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इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दियावरना हम भी आदमी थे काम के
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हाथों की लकीरो पे मत जा ग़ालिबनसीब उनके भी होते है जिनके हाथ नहीं होते
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मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे, चाहो जिस वक्त,मैं गया वक्त नहीं हूँ, के फिर आ भी न सकूँ।
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कितना खौफ होता है शाम के अंधेरों में, पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते|
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इस कदर तोड़ा है मुझे उसकी बेवफाई ने गालिब, अब कोई प्यार से भी देखे तो बिखर जाता हूं मैं|
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हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे